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Soybean Seeds

RVS-18
KDS-726
JS-2029

Wheat Seeds

LOK-1

GW-322

GW-273

GJW-463

HD-2932 (PUSA-111)

Soybean Seed

JS-9560
JS-2304
JS-9305
JS-335

 

WHEAT SEEDS

HI-8663 (POSHAN)
HI-8737 (PUSA ANMOL)
HI-1544 (PURNA)
HI-8663(POSHAN)
HI-8759(PUSA TEJAS)
HI-1605 (PUSA UJALA)

आधार एवं प्रामाणिक बीज हेतु सम्पर्क करे

उपरोक्त समस्त फसलों एवं बीजों का विवरण / विशेषताएं आदर्श कृषि कार्यमाला एवं आदर्श परिस्थिति के अनुसार प्राप्त जानकारी के आधार पर तथा कृषको से प्राप्त व्यवहारिक / वास्तविक आंकडों के आधार पर दिये गये हैं ! इस आदर्श परिस्थितियों में परिवर्तन होने पर

गेहूँ : लोक-1

भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय गेहूँ की किस्म है लोक-1, जो लोक भारती इंस्टीट्यूट, सनोसरा (गुजरात) द्वारा विकसित की गई है तथा मध्य क्षेत्र में बोनी हेतु उपयुक्त है। इसकी उत्पादकता 30-40 क्विंटल हेक्टेयर तथा पकने की अवधि 115-120 दिवस है। इसके पौधों की ऊँचाई 90 से 100 से.मी., तथा 1000 दानों का वजन लगभग 55-60 ग्राम होता है। 100 से 125 किलो हेक्टेयर बीज दर व 9 इंच लाईन से लाईन की दूरी एवं 4 से 5 सिंचाई में आदर्श परिणाम देती है।

गेहूँ : एच. आई - 8663

गेहूँ की यह मालवी कठिया किस्म दलिया, सूजी एवं पास्ता हेतु उत्तम है। इसका दाना बोल्ड, कठोर, चमकीला, गोलाकार, सुन्दर आकर्षक तथा उच्चतम प्रोटीन प्रतिशत वाला होता है, 1000 दानों का वजन 45-50 ग्राम, पौधे की ऊँचाई 80 से 85 से.मी., पत्तियों की चौड़ाई मध्यम, पूर्ण झुकी हुई तथा बालियाँ सफेद, रोएँ रहित होती हैं। बीज 45-50 किलो प्रति एकड़ की दर से 10 नव. से 15 दिस. तक बुवाई करने पर 4-5 सिंचाई में 50 से 55 क्विं. प्रति हेक्टेयर उत्पादन देती है।

गेहूँ : जी डब्लू 322

गेहूँकी यहकिस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के बीजापुर केन्द्र (गुजरात) द्वारा विकसित की गई है जो अधिक पैदावार देने वाली लॉजिंग (आड़ा पड़ना) एवं शेटरिंग रोधी किस्म है। चपाती हेतु यह एक उपयुक्त किस्म है। इसकी उत्पादकता 50 से 55 क्विं. प्रति हेक्टेयर तथा पकने की अवधि 135-140 दिवस है। इसके पौधों की ऊँचाई लगभग 90 सेमी. तथा 1000 दानों का वजन लगभग 45 ग्राम होता है। अधिकतम उत्पादन हेतु बीज दर 100 किलो प्रति हेक्टेयर, लाईन सेलाईन की दूरी 9इंचरखना तथा 4-5 सिंचाई देना चाहिये।

गेहूँ : एच.आई-1544 (पूर्णा)

शरबती गेहूँ की यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के गहन अनुसंधान द्वारा विकसित की गई है जो अधिक पैदावार देने के साथ-साथ चपाती हेतु भी श्रेष्ठ किस्म है । इसकी उत्पादकता 50 से 55 क्विं. प्रति हेक्टेयर तथा पकने की अवधि 110-115 दिवस है। इसके पौधों की ऊँचाई 85-90 से.मी. तथा 1000 दानों का वजन लगभग 40-50 ग्राम होता है।

गेहूँ : जी.डब्ल्यू.-273

गेहूँ की यह किस्म समय से बोनी (10 से 25 नवंबर) हेतु एक उपयुक्त किस्म है जो भारत के सभी राज्यों में बोयी जाती है। इसकी

गेहूँ : एच.आई. - 8737 (पूसा अनमोल)

गेहूँ की यह कठिया किस्म पूसा के सहयोगी संस्थान गेहूँ अनुसंधान केन्द्र इन्दौर से वर्ष 2015 में जारी की गई। यह किस्म म.प्र., राज., गुज., महा., छ.ग. में बुआई हेतु अनुशंसित है। इसकी अवधि 125 दिवस है। पौधों की ऊँचाई 83-88 से.मी. होती है तथा पौधे काफी कूचे (टिलर्स) छोड़ने वाले होते हैं। पौधों की काड़ी कड़क होने से तेज हवा/आंधी में आड़ा पड़ने (लाजिंग) की समस्या नहीं होती है। यह किस्म 3-5 सिंचाई देने पर 60 क्विं./हेक्टेयर तक उत्पादन देने की क्षमता रखती है।

गेहूँ: एच.आई.-8759 (पूसा तेजस)

गेहूँ की यह नवीनतम कठिया किस्म समय से बोनी हेतु म.प्र., राज., छ.ग. आदि क्षेत्र हेतु वर्ष 2017 में गेहूँ अनुसंधान केन्द्र इन्दौर से विकसित की गई है। इसमें अन्य कठिया किस्मों से लगभग 10-12 प्रतिशत अधिक उत्पादन देने की क्षमता है जो किसानों द्वारा लिये गये उत्पादन के आँकड़ों में पाया गया। इसकी अवधि 115-120 दिवस है। 1000 दानों का वजन 50-55 ग्राम होता है जो प्रोटीन, विटामिन-ए, जिंक तथा अन्य पोषक तत्त्वों से भरपूर होते हैं।

गेहूँ: जे.डब्ल्यू .-3382

गेहूं में मुख्य रूप से पीला रेतुआ, गेरूआ रोग और काला कंडुआ (खुली कांगियारी) रोग होता है। यह रोग फफूंद के रूप में फैलता है। तापमान में वृद्धि के साथ-साथ गेहूं को पीला रेतुआ रोग लग जाता है। इससे निपटने के लिए कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर ने ऐसी प्रजाति विकसित की है जो 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म तापमान रोधी है जिसका उत्पादन 55-65 क्विंटल/हेक्टेयर होता है। विशेषतः रोटी के लिये अब तक की सबसे बेहतर किस्म है।

सोयाबीनः जे.एस.- 95-60

कई वर्षों से किसान परेशान थे कि एक अच्छी प्रामाणिक सोयाबीन की अगेती किस्म का उनके पास कोई बेहतर विकल्प नहीं था। वर्षों के गहन अनुसंधान के पश्चात् जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय म. प्र. द्वारा अतिशीघ्र पकने वाली किस्म जे.एस.95-60 विकसित की गई। जल्दी कटाई होने के कारण खेत खाली होने की स्थिति में अगेती (अर्ली) रबी फसल जैसे आलू,प्याज,लहसुन,मटर,सुजाता गेहूँ तथा डॉलर चना बोने वाले किसानों के लिये यह किस्म एक आदर्श विकल्प है, जिससे किसान इन फसलों का उत्पादन जल्दी प्राप्त होने से मंडी में विक्रय कर उच्चतम भावों का लाभ ले सकता है। बीज दर 80 किलो प्रति हेक्टेयर एवं कतारों की दूरी 30 से.मी. (1 फीट) रखने पर आदर्श परिस्थितियों में कम अवधि की किस्म होते हुए भी लगभग 20 क्विं. प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देने की क्षमता है।

सोयाबीन: 93-05

सोयाबीन की यह किस्म जे.एस. 93-05, जे.एस. 335 की तुलना में लगभग एक सप्ताह पूर्व पककर तैयार हो जाती है। इसकी अवधि 85-90 दिवस है। इस किस्म के दानें मध्यम, बोल्ड आकार के, गहरे, पीले आकर्षक चमकदार तथा काली नाभि वाले होते हैं। 100 दानों का वजन 12-13 ग्राम, अंकुरण क्षमता अत्यधिक 90 से 95 प्रतिशत तक होती है। इसकी पत्तियाँ नुकीली, लम्बी, फूलों का रंग बैंगनी तथा पौधे अर्द्ध सीमित वृद्धि वाले मध्यम ऊँचाई के होते हैं। तना व फलियाँ रोएँ रहित होती हैं। फलियाँ पकने पर गहरे काले रंग की हो जाती हैं। फलियों में चार दाने वाली फलियों की संख्या काफी होती है। इसकी फली में चटखने की समस्या लगभग नहीं के बराबर होती है। पौधों की ऊँचाई अच्छी होने से हार्वेस्टर से कटाई के लिए उपयुक्त है बीजदर 25-30 किलो प्रति एकड़ एवं कतार से कतार की दूरी 18 इंच रखने पर 20। 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

सोयाबीन : जे.एस. 2034

यह सोयाबीन की नवीनतम किस्म है, जिसकी पत्ती नुकीली, अण्डाकार और गहरी हरी होती है। चार से पाँच शाखाएँ तथा फूल बैंगनी होते हैं। पौधे की ऊँचाई 75-80 से.मी. तथा उत्पादन 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है। 100 दानों का वजन 12-13 ग्राम तथा बीज हल्के पीले रंग का होता है। फसल 85-90 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। विशेषतः पीला विषाणु रोग, चारकोल राट, पत्ती धब्बा, बेक्टेरियल पश्चुल एवं कीट प्रतिरोधी क्षमता वालीकम वर्षा में उपयोगी किस्म है।